हाथरस। आधुनिक युग में महिलाएं रूढ़िवादी बेड़ियों का बंधन तोड़ कर जीवन हर क्षेत्र में अपना लोहा मनवा रही हैं। जिले की सशक्त महिलाएं जिस भी क्षेत्र में जा रही हैं अपनी छाप छोड़ रही हैं। जीवन में आने वाली चुनौतियों का सामना बड़ी जीवटता से करते हुए अपने लक्ष्य पर अग्रसर हो रही हैं। ये हैं जिले की कुछ महिलाएं जो अपने अपने क्षेत्र में बुलंदी का परचम फहरा रही हैं-
चंद्रकांता शर्मा
गायत्री शक्तिपीठ हाथरस की संस्थापिका व मुख्य प्रबंध ट्रस्टी चंद्रकांता शर्मा कई साल से क्षेत्र में अध्यात्म की अलख जगा रही हैं। उन्होंने पूरा जीवन समाज को नई दिशा देने में लगा दिया है। नशा मुक्ति, महिला सशक्तिकरण, पर्यावरण, सामाजिक सुधार आदि को लेकर भी उन्होंने कई अभियान चलाए हैं। वरिष्ठ सरकारी अधिकारी की पत्नी होने के बावजूद सुख सुविधाओं को छोड़कर वे पिछले लगभग 35 वर्षों से क्षेत्र में शहर से लेकर गांव देहात तक सक्रिय रही हैं। 60 के दशक में परास्नातक तक शिक्षा प्राप्त कर चुकी चंद्रकांता शर्मा महिलाओं के अधिकारों के लिए भी काफी सक्रिय रहती हैं। इनका कहना है कि नारी अब अपने अधिकारों के लिए जाग चुकी है।
प्रज्ञा यादव
उपजिलाधिकारी सासनी के पद पर तैनात पीसीएस अधिकारी प्रज्ञा यादव 2020 बैच की अधिकारी हैं। इन्होने दिल्ली विश्वविद्यालय से स्नातक करने के बाद बीएड किया। इनका ध्येय हर महिला को विभागीय योजना से लाभान्वित करना है। प्रज्ञा यादव का कहना है कि महिला दिवस महिलाओं के अधिकारों के चिंतन मनन का दिन है। मेरा प्रयास सरकारी विद्यालयों में बच्चियों से संवाद करना होता है। मेरा प्रयास होता है कि बच्चियां भी बड़े सपने देखें और उन्हें पूरा करें। स्वयं सहायता समूह में महिलाएं इकठ्ठा होकर छोटे छोटे उद्योग स्थापित कर रही हैं। ये एक तरह से महिलाओं के आगे बढ़ने का बेहतरीन प्रयास है। आज महिलाएं घर से बाहर निकलकर सामाजिक झंझावातों से जूझ कर अपना अलग मुकाम बना रही हैं।
प्रतीक्षा कटारा
2022 बैच की नायब तहसीलदार प्रतीक्षा कटारा मूलतः इगलास की रहने वाली हैं। उनकी प्रारंभिक शिक्षा विद्या मंदिर स्कूल में हुई। छोटे से कस्बे में रहकर प्रशासनिक अधिकारी के पद का सपना बड़ा सपना देखा और सारी बाधाओं को तोड़कर उसे प्राप्त भी किया। आज प्रतीक्षा कटारा जिले की तहसील सदर में नायब तहसीलदार का पद संभाल रही हैं। इनका कहना है कि एक दिन महिला दिवस मनाने से महिलाओं की वास्तविक स्थिति में सुधार नहीं हो पाएगा। इसे औपचारिक बनाने के बजाय धरातल पर अपने घर, ऑफिस से महिलाओं को वो सम्मान दिया जाए जिसकी वो पात्र हैं। उन्होंने कहा कि वे गांव चौपाल कार्यक्रम में ग्रामीण महिलाओं की भागीदारी सुनिश्चित करती हैं। इससे महिलाओं को अपनी समस्याओं को खुद आगे आकर रखने का मौक़ा मिलता है।
अलका वार्ष्णेय
वसुंधरा पुरम निवासी अलका वार्ष्णेय तुलसी दीदी के नाम से जानी जाती हैं। वे पिछले काफी वर्षों से पर्यावरण संरक्षण के लिए कार्य कर रही हैं। खासतौर पर वर्षा ऋतु से पहले वे तुलसी सहित अन्य प्रजाति के पौधों की खेप तैयार करती हैं। फिर वे घर घर इन पौधों को निःशुल्क बांटती हैं। अब तक वे लोगों में हजारों पौध बांट चुकी हैं। लोग तुलसी सहित विभिन्न पौधे निःशुल्क लेने के लिए उनके घर पर कभी भी दस्तक दे देते हैं। इनका कहना है कि पर्यावरण बचाने के लिए अगर महिलाएं आगे आती हैं तो वे समझिये कि एक प्रकार से पूरा परिवार इसमें शामिल होता है।