हाथरस। रविवार को फादर्स डे के अवसर पर जिले के साहित्यकारों ने आशुकवि अनिल बौहरे के संयोजन में ऑनलाइन पिता काव्य सम्मान काव्य प्रस्तुति का आयोजन किया। राष्ट्रीय कवि संगम के जिलाध्यक्ष डॉ भरत यादव की अध्यक्षता में आयोजित पितृ भावना से ओतप्रोत इस कार्यक्रम का शुभारम्भ आशुकवि अनिल बौहरे ने मां सरस्वती का वंदन कर किया। इस मौके पर निम्न कवियों ने पिता के प्रति समर्पित ऑनलाइन भावपूर्ण काव्य प्रस्तुति दी।
आशुकवि अनिल बौहरे –
“पिता ही है,बेटे का स्थाई पता,
पल में माफ करे,बेटे की खता।”

पूरन सागर – 
“धूप छांव न देखे बिलकुल तन पै कपड़े देखे ना
पालन पोषण करने को पितु महनत मजदूरी देखे ना”
उन्नति भारद्वाज सिकन्दराराऊ –
“अपने पिता को आज मैं नव विहान दूं।
तोहफे मैं दूं गुल या महकता जहान दूं।”
डॉ सुनीता उपाध्याय –
“पिता रोटी,कपड़ा, मकान, आसमान है,
पिता के आशीश से समाज में सम्मान है।”
सोनाली वार्ष्णेय –
“बच्चों के लिए सर्वस्व करता, पिता है जनाब।
तपती धूप में,शीतल फब्बारा बने पिता है जनाब।”
रूपम कुशवाह –
“हर दुख में मेरे साथ रहे खड़े,
पिता मुझे जिताने आगे बढे।”
करिष्मा शर्मा –
“मेरे सपनों की उड़ान का अस्मा है पापा,
दुआ मांगती,सुरक्षित रहें, आसमानी पापा।”
योगिता वार्ष्णेय –
“मां की डांट ने जब भी मुझको रुलाया है,
पापा के प्यार ने तभी मुझको हंसाया है।”
करीना चौधरी –
“खून पसीना जिन्होंने बहाया हमको पालने में,
बड़े लाड़ से उन्हीं पिता ने झुलाया हमको पालने में।”
जय प्रकाश पचौरी सादाबाद –
“पूज्य पिता की आज्ञा मानना है कर्तव्य हमारा।
वृध्दापन में करे जो सेवा,बेटा सबसे प्यारा।”
ग़ाफ़िल स्वामी –
“खुशी लुटाते सुत पर सहते कष्ट तमाम,
फादर्स डे पर अनन्त प्रणाम,पिता के नाम।”
संस्कार भारती के जिलाध्यक्ष चेतन उपाध्याय –
“खून पसीना खाद मिला, दिया अनुपम जीवन।
ईश्वर रूपी पिता आपको इन सांसों का अर्पन।”
प्रभू दयाल दीक्षित प्रभू –
“पिता सभी की मूल है, बच्चे हैं फल फूल।
परम पिता सबके प्रभू,हम चरणों की धूल”
सुख प्रीत सिंह सुखी –
“टूटी चप्पल खुद पहन,हमको जूते दिलवाता है।
पाने का नाम पापा, जिसमें दो बार पापा आता है।”
काका स्मारक के सचिव डॉ जितेन्द्र शर्मा –
“पिता ईश्वर का,पुत्र को ऐसा रूप है।
खुद अभाव सह, बेटे को देता धूप है।”
अजय गौड –
“पापा आपा थापा,हम कर्जदार आपके।
भूखा रह बेटे को खिलाया ऋणी बाप के”
पंडित हाथरसी –
“पिता हमारे भगवान है।
सच घर की वो शान है।”
गोपाल चतुर्वेदी –
“इतनी मिलती है मेरी सूरत मेरे बाप से,
लोग मुझको मेरा ही बाप समझ लेते हैं।”
सेठ सुनील बर्मन –
“हर कदम पर साया बनकर, चलते हैं पिता।
मुसीबतों में दीवार बनकर, ढलते हैं पिता।”
प्रगल्भ लवानिया –
“पिता धर्मः,पिता स्वर्गः,पिता हि परम तपः।”
राष्ट्रीय कवि संगम के जिलाध्यक्ष डॉ भरत यादव –
“हांजी बाबूजी,जी बाबूजी,
सबसे बढकर हैं पिताजी।”
कार्यक्रम के अंत में आभार प्रकट करते हुए बृज कला केन्द्र के अध्यक्ष चन्द्रगुप्त विक्रमादित्य ने कहा
मैंने खुद देखे नहीं है विधाता,
ऐसे ही होंगे जैसे होते पिता।
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